BHAGVAN KE ROOP
BHAGVAN KE ROOP KE BARE ME JANE
रविवार, 29 अप्रैल 2012
मंगलवार, 24 जनवरी 2012
ब्रह्मा जी के आदेश अनुसार देवताओं ने कामदेव से शिव जी की तपस्या भंग करने का अनुरोध किया। इस पर कामदेव ने कहा, शिव जी कि तपस्या भंग कर के मेरा कुशल नहीं होगा तथापि मैं आप लोगों का कार्य सिद्ध करूँगा।
इतना कहकर कामदेव पुष्प के धनुष से सुसज्जित होकर वसन्तादि अपने सहयोगी को अपने साथ लेकर शिवजी के तपस्या करने वाले स्थान पर पहुँच गये। वहाँ पर पहुँच कर कामदेव ने अपना ऐसा प्रभाव दिखाया कि वेदों की सारी मर्यादा धरी कि धरी रह गई। कामदेव के इस प्रभाव से भयभीत होकर ब्रह्मचर्य, संयम, नियम, धीरज, धर्म, ज्ञान, विज्ञान, वैराग्य आदि जो विवेक के गुण कहलाते हैं, भाग कर छिप गये। सम्पूर्ण जगत् में स्त्री-पुरुष एवं प्रकृति का समग्र प्राणी समुह सब अपनी-अपनी मर्यादा छोड़कर काम के वश में हो गये। आकाश, जल और पृथ्वी पर विचरण करने वाले समस्त पशु-पक्षी सब कुछ भुला कर केवल काम के वश हो गये। हजारो साल से तपस्या कर सिद्ध, विरक्त, महामुनि और महायोगी बनी विद्वान भी काम के वश में होकर योग संयम को त्याग स्त्री सुख पाने में मग्न हो गये। तो मनुष्यों कि बात ही क्या हो सकती हैं?
एसी स्थिती होने के पश्वयात भी कामदेव के इस कौतुक का शिव जी पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा। इससे कामदेव भी भयभीत हो गये किन्तु अपने कार्य को पूर्ण किये बिना वापस लौटने में उन्हें संकोच हो रहा था । इसलिये उन्होंने तत्काल अपने सहायक ऋतुराज वसन्त को प्रकट कर किया। वृक्ष पुष्पों से सुशोभित हो गये, वन-उपवन, बावली-तालाब आदि हरे भेरे होकर परम सुहाने हो गये, शीतल एवं मंद-मंद सुगन्धित पवन चलने लगा, सरोवर कमल पुष्पों से परिपूरित हो गये, पुष्पों पर भ्रमर बीन-बीना ने लगे । राजहंस, कोयल और तोते रसीली बोली बोलने लगे, अप्सराएँ नृत्य एवं गान करने लगीं।
इस पर भी जब तपस्यारत शिव जी का कुछ भी प्रभाव न पड़ा तो क्रोधित कामदेव ने आम्रवृक्ष की डाल पर चढ़कर अपने पाँचों तीक्ष्ण पुष्प बाणों को छोड़ दिया जो कि शिव जी के हृदय में जाकर लगे। उनकी समाधि टूट गई जिससे उन्हें अत्यन्त क्षोभ हुआ। आम्रवृक्ष की डाल पर कामदेव को देख कर शिवजी क्रोधित हो कर उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया और देखते ही देखते कामदेव भस्म हो गये।
कामदेव कि पत्नी रति अपने पति कि ऎसी दशा सुनते ही रुदन करते हुए शिवजी के पास पहुंच गई। उसके पति विलाप से शिवजी क्रोध त्याग कर बोले, हे रति! विलाप मत कर जब पृथ्वी के भार को उतारने के लिये यदुवंश में श्री कृष्ण अवतार होगा तब तेरा पति उनके पुत्र (प्रद्युम्न) के रूप में उत्पन्न होगा और तुझे पुनः प्राप्त होगा। तब तक वह बिना शरीर के ही इस संसार में सर्वत्र व्याप्त होता रहेगा। अंगहीन हो जाने के कारण कामदेव को अनंग कहते हैं। इसके बाद ब्रह्मा जी सहित समस्त देवताओं ने शिव जी के पास आकर उनसे पार्वती जी से विवाह कर लेने के लिये प्रार्थना की जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। भरमा जी की पत्नी गायत्री है जिन्हें सावित्री और सरवती भी कहते है
यह ही सरे श्रृष्टि उत्पन करते है
इनके ८ पुत्र ही जिन्हों ने आगे चलकर श्रृष्टि बनी अगले पोस्ट में हम महादेवी सुर्सवित्री सरस्वती देवी पर चर्चा करेंगे पोस्ट पड़ने का बहुत धन्यवाद कोई शंका हो तो मुझे msg जरुर करे प्लेअसे ज्यादा से ज्यादा यह ब्लॉग ज्वाइन करे टंकी में अपनी संस्कृति को दुबारा जागृत कर सकों
शनिवार, 14 जनवरी 2012
bhagwan vishnu
ॐ श्री विष्णु लक्ष्मी पते सर्वलोकआदि पालना यशोदा नंदन दिति सुते श्री हरी देवेयो नामोस्तोतेय*
पाठको आज हम भगवन विष्णु पर चर्चा करेंगे श्रृष्टि के पालनहार श्री विष्णु भगवन पर
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgEi_pUUoBVjj-O0JxIycoVL_uXsOI-0fp623VbJTuVpsN6P_AyRKoq2VFBRnx6_CB1m2Yj7Ig1l3gqFZ9SxFCbUbu-bMybuXlgMo8mXJ-CH7vDeig8uO1glQLP53bZ6X-j11ohRaHC7fPq/s320/Hindu-God-Vishnu-Photo-0016.jpg)
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पाठको आज हम भगवन विष्णु पर चर्चा करेंगे श्रृष्टि के पालनहार श्री विष्णु भगवन पर
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हिन्दू धर्म के अनुसार विष्णु परमेश्वर के तीन मुख्य रुपों में से एक रुप हैं। पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु को विश्व का पालनहार माना जाता है। त्रिमूर्ति के अन्य दो भगवान शिव और ब्रह्मा को माना जाता है। जहाँ ब्रह्मा को विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है वहीं शिव को संहारक माना गया है।
विडियो त्तामिल में है इसके ले खेयद है यह विडियो इंडी में नहीं मिल पी है कृपया शमा कर दे
विष्णु की पत्नी लक्ष्मी है। इनका आसन सेश्नाग है और वहन गरुड़ है यह सदा लक्ष्मी के संग रेह्त्वे है इनके अवतर कथा जानने के ले विडियो देखे यह श्रृष्टि के पालन करता है यह अनेक अवतार लेकर श्रृष्टि की दानवो से रक्क्षा करते है इनके १०१ आवत है पर्मुख १० अवतार के नाम व् कथा निमं है भगवान् विष्णु के दस मुख्य अवतार मान्यता प्राप्त हैं। यह् अवतार क्रमशः प्रस्तुत हैं :
१) मत्स्य अवतार : मत्स्य (मछ्ली) के अवतार में भगवान विष्णु ने एक ऋषि को सब प्रकार के जीव-जन्तु एकत्रित करने के लिये कहा और पृथ्वी जब जल में डूब रही थी, तब मत्स्य अवतार में भगवान ने उस ऋषि की नाव की रक्षा की थी। इसके पश्चात ब्रह्मा ने पुनः जीवन का निर्माण किया। एक दूसरी मन्यता के अनुसार एक राक्षस ने जब वेदों को चुरा कर सागर में छुपा दिया, तब भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों को प्राप्त किया और उन्हें पुनः स्थापित किया।
२) कूर्म अवतार : कूर्म के अवतार में भगवान विष्णु ने क्षीरसागर के समुद्रमंथन के समय मंदर पर्वत को अपने कवच पर संभाला था। इस प्रकार भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकि नामक सर्प की सहायता से देवों एंव असुरों ने समुद्र मंथन करके चौदह रत्नोंकी प्राप्ती की। (इस समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप भी धारण किया था।)
३) वराहावतार : वराह के अवतार में भगवान विष्णु ने महासागर में जाकर भूमि देवी कि रक्षा की थी, जो महासागर की तह में पँहुच गयीं थीं। एक मान्यता के अनुसार इस रूप में भगवान ने हिरण्याक्ष नामक राक्षस का वध भी किया था।
४) नरसिंहावतार : नरसिंह रूप में भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी और उसकेपिता हिरण्यकश्यप का वध किया था। इस अवतार से भगवान के निर्गुण होने की विद्या प्राप्त होती है।
५) वामन् अवतार : इसमें विष्णु जी वामन् (बौने) के रूप में प्रकट हुए। भक्त प्रह्लादके पौत्र, असुरराज राज बलि से देवतओं की रक्षा के लिए भगवान ने वामन अवतार धारण किया।
६) परशुराम अवतार: इसमें विष्णु जी ने परशुराम के रूप में असुरों का संहार किया।
७) राम अवतार: राम ने रावण का वध किया जो रामायण में वर्णित है।
८) कृष्णावतार : भगवान श्रीकृष्ण अपने सव््ाभाविक रूप मे देवकी और वसुदेव के घर जन्म लिया था। उनका लालन पालन यशोदा और नंद ने किया था। इस अवतार का विस्तृत वर्णन श्रीमद्भागवत पुराण मे मिलता है।
९) बुद्ध अवतार: इसमें विष्णुजी बुद्ध के रूप में असुरों को वेद की शिक्षा के लिये तैयार करने के लिये प्रकट हुए। आप सोच रहे होगे की य्रेह तो ९ अवतार है तो पाठकों यह भी जान ले की इनके 10sva नकल्कि अवतार अभी होना है इस कलयुग में इनके जनम का विवरण भविष पूरण में है - महाप्रलय के पश्चात् भगवान योग निद्रा में लीन हो जाते हैं| अनन्तकाल के पश्चात योग निद्रा से जागने पर पुनः श्रृष्टि की रचना करने हेतु महातत्वों के योग से दस इन्द्रियाँ, एक मन और पाँच भूतों से युक्त पुरुष रूप ग्रहण करते हैं| उनकी नाभि से एक कमल प्रकट होकर क्षीर सागर से ऊपर आता है और उस कमल से ब्रह्मा की उत्पत्ति होती है| क्षीरशायी भगवान का विराट रूप होता है| उस विराट रूप के सहस्त्रों सिर, सहस्त्रों कर्ण, सहस्त्रों नासिकाएँ, सहस्त्रों मुख, सहस्त्रों भुजाएँ तथा सहस्त्रों जंघायें होती हैं| वे सहस्त्रों मुकुट, कुण्डल, वस्त्र और आयुधों से युक्त होते हैं| उस विराट रूप में समस्त लोक ब्रह्माण्ड आदि व्याप्त रहते हैं, उसी के अंशों से समस्त प्राणियों की श्रृष्टि होती है तथा योगीजन उसी विराट रूप का अपनी दिव्य दृष्टि से दर्शन करते हैं|
भगवान का यही विराट स्वरूप भक्तों की रक्षा और दुष्टों के दमन के उद्देश्य से बार-बार अवतार लेते हैं|
धर्म हेतु प्रभू लें अवतारा| प्रगटें भू पर बारम्बारा॥ भक्तन हित अवतरत गोसाईं| तारें दुष्ट व्याध की नाईं॥
- भगवान ने कौमारसर्ग में सनक, सनन्दन, सनातन तथा सनत्कुमार ब्रह्मऋषियों का अवतार लिया| यह उनका पहला अवतार था|
- पृथ्वी को रसातल से लाने के लिये भगवान ने दूसरी बार वाराह का अवतार लिया|
- तीसरी बार ऋषियों को साश्वततंत्र, जिसे कि नारद पाँचरात्र भी कहते हैं और जिसमें कर्म बन्धनों से मुक्त होने का निरूपन है, का उपदेश देने के लिये नारद जी के रूप में अवतार लिया|
- धर्म की पत्नी मूर्ति देवी के गर्भ से नारायण, जिन्होंने बदरीवन में जाकर घोर तपस्या की, का अवतरण हुआ| यह भगवान का चौथा अवतार है|
- पाँचवाँ अवतार माता देवहूति के गर्भ से कपिल मुनि का हुआ जिन्होंने अपनी माता को सांख्य शास्त्र का उपदेश दिया|
- छठवें अवतार में अनुसुइया के गर्भ से दत्तात्रयेय प्रगट हुये जिन्होंने प्रह्लाद, अलर्क आदि को ब्रह्मज्ञान दिया|
- सातवीं बार आकूति के गर्भ से यज्ञ नाम से अवतार धारण किया|
- नाभिराजा की पत्नी मेरु देवी के गर्भ से ऋषभदेव के नाम से भगवान का आठवाँ अवतार हुआ| उन्होंने परमहँसी का उत्तम मार्ग का निरूपण किया|
- नवीं बार राजा पृथु के रूप में भगवान ने अवतार लिया और गौरूपिणी पृथ्वी से अनेक औषधियों, रत्नों तथा अन्नों का दोहन किया|
- चाक्षुषमन्वन्तर में सम्पूर्ण पृथ्वी के जलमग्न हो जाने पर पृथ्वी को नौका बना कर वैवश्वत मनु की रक्षा करने हेतु दसवीं बार भगवान ने मत्स्यावतार लिया|
- समुद्र मंथन के समय देवता तथा असुरों की सहायता करने के लिये ग्यारहवीं बार भगवान ने कच्छप के रूप में अवतार लिया|
- बारहवाँ अवतार भगवान ने धन्वन्तरि के नाम से लिया जिन्होंने समुद्र से अमृत का घट निकाल कर देवताओं को दिया|
- मोहिनी का रूप धारण कर देवताओं को अमृत पिलाने के लिये भगवान ने तेरहवाँ अवतार लिया|
- चौदहवाँ अवतार भगवान का नृसिंह के रूप में हुआ जिन्होंने हिरण्यकश्यपु दैत्य को मार कर प्रह्लाद की रक्षा की|
- दैत्य बलि को पाताल भेज कर देवराज इन्द्र को स्वर्ग का राज्य प्रदान करने हेतु पन्द्रहवीं बार भगवान ने वामन के रूप में अवतार लिया|
- अभिमानी क्षत्रिय राजाओं का इक्कीस बार विनाश करने के लिये सोलहवीं बार परशुराम के रूप में अवतार लिया|
- सत्रहवीं बार पाराशर जी के द्वारा सत्यवती के गर्भ से भगवान ने वेदव्यास के रूप में अवतार धारण किया जिन्होंने वेदों का विभाजन कर के अने उत्तम ग्रन्थों का निर्माण किया|
- राम के रूप में भगवान ने अठारहवीं बार अवतार ले कर रावण के अत्याचार से विप्रों, धेनुओं, देवताओं और संतों की रक्षा की|
- उन्नसवीं बार भगवान ने सम्पूर्ण कलाओं से युक्त कृष्ण के रूप में अवतार लिया|
- बुद्ध के रूप में भगवान का बीसवाँ अवतार हुआ|
- कलियुग के अन्त में इक्कीसवीं बार विष्णु यश नामक ब्राह्मण के घर भगवान का कल्कि अवतार होगा|
जब जब दुष्टों का भार पृथ्वी पर बढ़ता है और धर्म की हानि होती है तब तब पापियों का संहार करके भक्तों की रक्षा करने के लिये भगवान अपने अंशावतारों व पूर्णावतारों से पृथ्वी पर शरीर धारण करते हैं|
कल्कि अवतार की कथा विस्तार से -इस पुराण में प्रथम मार्कण्डेय जी और शुक्रदेव जी के संवाद का वर्णन है। कलयुग का प्रारम्भ हो चुका है जिसके कारण पृथ्वी देवताओं के साथ, विष्णु के सम्मुख जाकर उनसे अवतार की बात कहती है। भगवान् विष्णु के अंश रूप में ही सम्भल गांव में कल्कि भगवान का जन्म होता है। उसके आगे कल्कि भगवान् की दैवीय गतिविधियों का सुन्दर वर्णन मन को बहुत सुन्दर अनुभव कराता है।
भगवान् कल्कि विवाह के उद्देश्य से सिंहल द्वीप जाते हैं। वहां जलक्रीड़ा के दौरान राजकुमारी पद्यावती से परिचय होता है। देवी पद्यिनी का विवाह कल्कि भगवान के साथ ही होगा। अन्य कोई भी उसका पात्र नहीं होगा। प्रयास करने पर वह स्त्री रूप में परिणत हो जाएगा। अंत में कल्कि व पद्यिनी का विवाह सम्पन्न हुआ और विवाह के पश्चात् स्त्रीत्व को प्राप्त हुए राजगण पुन: पूर्व रूप में लौट आए। कल्कि भगवान् पद्यिनी को साथ लेकर सम्भल गांव में लौट आए। विश्वकर्मा के द्वारा उसका अलौकिक तथा दिव्य नगरी के रूप में निर्माण हुआ।
हरिद्वार में कल्कि जी ने मुनियों से मिलकर सूर्यवंश का और भगवान् राम का चरित्र वर्णन किया। बाद में शशिध्वज का कल्कि से युद्ध और उन्हें अपने घर ले जाने का वर्णन है, जहां वह अपनी प्राणप्रिय पुत्री रमा का विवाह कल्कि भगवान् से करते हैं।
उसके बाद इसमें नारद जी, आगमन् विष्णुयश का नारद जी से मोक्ष विषयक प्रश्न, रुक्मिणी व्रत का प्रसंग और अंत में लोक में सतयुग की स्थापना के प्रसंग को वर्णित किया गया है। वह शुकदेव जी की कथा का गान करते हैं। अंत में दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और शर्मिष्ठा की कथा है। इस पुराण में मुनियों द्वारा कथित श्री भगवती गंगा स्तव का वर्णन भी किया गया है। पांच लक्षणों से युक्त यह पुराण संसार को आनन्द प्रदान करने वाला है। इसमें साक्षात् विष्णु स्वरूप भगवान् कल्कि के अत्यन्त अद्भुत क्रियाकलापों का सुन्दर व प्रभावपूर्ण चित्रण है। जो कल्कि पुराण का अध्ययन व पठन करते हैं, वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं॥ जय कल्कि महाराज की जय इनका विवाह पद्मावती आर्थ माँ विष्णु से होना है
विडियो त्तामिल में है इसके ले खेयद है यह विडियो इंडी में नहीं मिल पी है कृपया शमा कर दे
पाठकों आज अपने विष्णु भगवन के बारे में पद्ध है आगे आप किस देवी या देवता के बारे में जानना पसंद करेंगे कमेन्ट करे
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या कोई ध्हर्मिक शंका का निवार्नन करना हो तो कमेन्ट करें धन्यअवाद!!
shakti mata
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या देवी सर्व भूतेशु शक्ति रूपें स्थान्स्चिता नमस्तासेय न्मस्तासेय नमस्तस्य नमो नमह
अर्थ- में उस महादेवी की आराधना करता हूँ जो सरे संसार के जड़ चेतन में शक्ति रूप से स्थित है इस देवी को में शत शत प्रणाम करता हूँ
प्रिय पाठको माँ वो शब्द है जिसकी महानता का वर्णन करने में में असमर्थ हूँ इस महान इश्वर रूप्नी इस्त्री के आज समाज में दयनीय अवस्था का भी में वर्णन नहीं कर कर ससकता खैर आज में आपको शक्ति में के बारे में बताऊंगा तो पाठकों बोलों जय माता दे!!!!!!!! माँ शब्द की व्याख्या निमं है-------------------------(@
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यह मेरे तरफ से इस माँ के चरनोम में अर्पित सरधा के फूल है
अर्थ- में उस महादेवी की आराधना करता हूँ जो सरे संसार के जड़ चेतन में शक्ति रूप से स्थित है इस देवी को में शत शत प्रणाम करता हूँ
प्रिय पाठको माँ वो शब्द है जिसकी महानता का वर्णन करने में में असमर्थ हूँ इस महान इश्वर रूप्नी इस्त्री के आज समाज में दयनीय अवस्था का भी में वर्णन नहीं कर कर ससकता खैर आज में आपको शक्ति में के बारे में बताऊंगा तो पाठकों बोलों जय माता दे!!!!!!!! माँ शब्द की व्याख्या निमं है-------------------------(@
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यह मेरे तरफ से इस माँ के चरनोम में अर्पित सरधा के फूल है
माता का संस्कृत मूल मातृ है । हिन्दी में इस शब्द का प्रयोग प्रायः इष्टदेवी को संबोधित करने के लिये किये जाता है, पर सामान्यरूप से माँ शब्द का प्रयोग ज्यादा होता है। अगर अपि कभी भगवन भोलेनाथ की तस्वीर देखे तो वो ध्यान मुद्रा में होते है पर वो सर्व शक्तिमान होते होएय भी किसका ध्यान करते है क्या भोलेनाथ से भी कोई बड़ी अज्ञात शक्ति विद्यमान है हाँ वो है अद्य शक्ति माँ वहीँ सभी में चेतना प्राण रूप से है इसी प्रकार ओधारण के ले शिव में से यदि महाशक्ति की शक्ति अर्थात इ को निकल दे तो देवाधी देव भी मात्र (शिव) शव रहे है जाते है है देवी माँ को बहुत नाम से पुकारते है जैसे दुर्गा कलि भद्रकाली महाशक्ति इन्द्राणी ब्रहमाणी वैष्णवी सरस्वती वारुनी आदि सभी की यह देवी शक्ति है यह शती शिवक को पारवती के रूप ने विष्णु को लुक्स्मी के रूप से ब्रहम को ब्रहमाणी के रूप में और इन्द्र को इन्द्राणी की रूप में मिली है येही देवी तेनो देवों की सृजन व् पालन करता है तेनो देव देवी की आज्ञा का पालन मात्र करते है विडियो देखे इसी देवी ने कए अवतार लेकर कभी दुर्गा काली व् लक्ष्मी बनते है` इनके बहुत नाम है पर्मुख नाम 108 निचे है-सती,
साध्वी, भवप्रीता,
भवानी,
भवमोचनी,
आर्या,
दुर्गा,
जया,
आद्या,
त्रिनेत्रा,
शूलधारिणी,
पिनाकधारिणी,
चित्रा,
चंद्रघंटा,
महातपा,
बुद्धि,
अहंकारा,
चित्तरूपा,
चिता,
चिति,
सर्वमंत्रमयी,
सत्ता,
सत्यानंदस्वरुपिणी,
अनंता,
भाविनी,
भव्या,
अभव्या,
सदागति,
शाम्भवी,
देवमाता,
चिंता,
रत्नप्रिया,
सर्वविद्या,
दक्षकन्या,
दक्षयज्ञविनाशिनी,
अपर्णा,
अनेकवर्णा,
पाटला,
पाटलावती,
पट्टाम्बरपरिधाना,
कलमंजरीरंजिनी,
अमेयविक्रमा,
क्रूरा,
सुन्दरी,
सुरसुन्दरी,
वनदुर्गा,
मातंगी,
मतंगमुनिपूजिता,
ब्राह्मी,
माहेश्वरी,
एंद्री,
कौमारी,
वैष्णवी,
चामुंडा,
वाराही,
लक्ष्मी,
पुरुषाकृति,
विमला,
उत्कर्षिनी,
ज्ञाना,
क्रिया,
नित्या,
बुद्धिदा,
बहुला,
बहुलप्रिया,
सर्ववाहनवाहना,
निशुंभशुंभहननी,
महिषासुरमर्दिनी,
मधुकैटभहंत्री,
चंडमुंडविनाशिनी,
सर्वसुरविनाशा,
सर्वदानवघातिनी,
सर्वशास्त्रमयी,
सत्या,
सर्वास्त्रधारिनी,
अनेकशस्त्रहस्ता,
अनेकास्त्रधारिनी,
कुमारी,
एककन्या,
कैशोरी,
युवती,
यति,
अप्रौढ़ा,
प्रौढ़ा,
वृद्धमाता,
बलप्रदा,
महोदरी,
मुक्तकेशी,
घोररूपा,
महाबला,
अग्निज्वाला,
रौद्रमुखी,
कालरात्रि,
तपस्विनी,
नारायणी,
भद्रकाली,
विष्णुमाया,
जलोदरी,
शिवदुती,
कराली,
अनंता,
परमेश्वरी,
कात्यायनी,
सावित्री,
प्रत्यक्षा,
ब्रह्मावादिनी।
इनके स्वरूपों की ल्कथा दुर्गा पार्वती का दूसरा नाम है। हिन्दुओं के शाक्त साम्प्रदाय में भगवती दुर्गा को ही दुनिया की पराशक्ति और सर्वोच्च देवता माना जाता है (शाक्त साम्प्रदाय ईश्वर को देवी के रूप में मानता है) । वेदों में तो दुर्गा का कोई ज़िक्र नहीं है, मगरउपनिषद में देवी "उमा हैमवती" (उमा, हिमालय की पुत्री) का वर्णन है । पुराण में दुर्गा को आदिशक्ति माना गया है । दुर्गा असल में शिव की पत्नी पार्वती का एक रूप हैं, जिसकी उत्पत्ति राक्षसों का नाश करने के लिये देवताओं की प्रार्थना पर पार्वती ने लिया था -- इस तरह दुर्गा युद्ध की देवी हैं । देवी दुर्गा के स्वयं कई रूप हैं । मुख्य रूप उनका "गौरी" है, अर्थात शान्तमय, सुन्दर और गोरा रूप । उनका सबसे विकराल रूप काली है,
यह तें देविया शक्त का रूप है यह तीन ही प्रमुख है
महादेवी का मूल महामंत्र है- ॐ आईं ह्रीं क्लीं
चमुन्दायण विचय
एस मंत्र के १००८ सुध चित के जाप से माँ आतिशिघ्रा
मनोकामना पूरी कर के badhao का हरण करते हैं
महाकाली माँ के १ लाख मंत्र के जाप से माँ दर्शन देकर
वर देते हैं -श्री चामुंडा निशुम्भ हरिणी सतिसुता श्री
चन्द्र धर्निनी नमामि रुद्रानी जगद्पलिनी नमामि
शक्ति जगातोधारिणी दर्शन देव्या दार्शन अभीलाशी
श्री शल्य देवा दर्शन देवी दर्शन देवी म्हाकलिकमिनी अर्ध्य हासिनी श्री मु न्द्मालिनी
परमशक्ति महाशक्ति धरनी वैभव करनी दर्शन देवअ
शव वाहने देव चरनन के दासी दर्शन अभिलाषी क्रिपहू माँ देवी श्री कली रूपा श्रृष्टि जनन्य श्री श्यामा आम्बा कृष्णा नमामि
श्रृष्टि जनन्य दर्शन देहीं श्री श्रृष्टि जनन्य अहरी क्रिसना नमामि
जय माँ लक्ष्मी
श्री महालक्ष्मी जी समुन्द्र मंथन से प्रकट हुई है है इसके ले विडियो देखे
ॐ श्री महालक्ष्मी नमः विष्णु वल्लभा पद्मासना
विश्नुभार्य नमो नमामि
जय माँ सरस्वती आदि शती ब्र्हम्भार्य विन्वादिनी
श्वेथान्स्वहिनी वेदमाता ज्ञान प्रदायनी म्हासर्वती
शरणम् तवं
इनका ,मूल मानता एं हैं इसका १ क्रोड़े जाप से ,माँ
दर्शन देकर वार प्रदान करते है
यह उपरोक्त तीन म्हादेवियों का हमने वर्णन किया
आब में १० म्हादेवियों का वर्णन करता हूँ एहिं तंत्र से
जुडी है कथा पड़ने और १० देवियों के दर्शन
के ले निम्न कथा पडे व् चित्र
जय महाकाली माता
जय महाकाली माता
जय महाकाली माता
जय महाकाली माता
कथा नीचे हैं
शैलपुत्री
देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं। दुर्गाजी पहले स्वरूप में 'शैलपुत्री' के नाम से जानी जाती हैं।[१] ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है।
ब्रह्मचारिणी
नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली।
चंद्रघंटा
माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है।
कूष्माण्डा
नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अदाहत' चक्र में अवस्थित होता है।
स्कंदमाता
नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।
कात्यायनी
माँ दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। उस दिन साधक का मन 'आज्ञा' चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।
कालरात्रि
माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है।
महागौरी
माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों को सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं।
सिद्धिदात्री
माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है।
इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है।
यह तें देविया शक्त का रूप है यह तीन ही प्रमुख है
महादेवी का मूल महामंत्र है- ॐ आईं ह्रीं क्लीं
चमुन्दायण विचय
एस मंत्र के १००८ सुध चित के जाप से माँ आतिशिघ्रा
मनोकामना पूरी कर के badhao का हरण करते हैं
महाकाली माँ के १ लाख मंत्र के जाप से माँ दर्शन देकर
वर देते हैं -श्री चामुंडा निशुम्भ हरिणी सतिसुता श्री
चन्द्र धर्निनी नमामि रुद्रानी जगद्पलिनी नमामि
शक्ति जगातोधारिणी दर्शन देव्या दार्शन अभीलाशी
श्री शल्य देवा दर्शन देवी दर्शन देवी म्हाकलिकमिनी अर्ध्य हासिनी श्री मु न्द्मालिनी
परमशक्ति महाशक्ति धरनी वैभव करनी दर्शन देवअ
शव वाहने देव चरनन के दासी दर्शन अभिलाषी क्रिपहू माँ देवी श्री कली रूपा श्रृष्टि जनन्य श्री श्यामा आम्बा कृष्णा नमामि
श्रृष्टि जनन्य दर्शन देहीं श्री श्रृष्टि जनन्य अहरी क्रिसना नमामि
जय माँ लक्ष्मी
श्री महालक्ष्मी जी समुन्द्र मंथन से प्रकट हुई है है इसके ले विडियो देखे
ॐ श्री महालक्ष्मी नमः विष्णु वल्लभा पद्मासना
विश्नुभार्य नमो नमामि
जय माँ सरस्वती आदि शती ब्र्हम्भार्य विन्वादिनी
श्वेथान्स्वहिनी वेदमाता ज्ञान प्रदायनी म्हासर्वती
शरणम् तवं
इनका ,मूल मानता एं हैं इसका १ क्रोड़े जाप से ,माँ
दर्शन देकर वार प्रदान करते है
यह उपरोक्त तीन म्हादेवियों का हमने वर्णन किया
आब में १० म्हादेवियों का वर्णन करता हूँ एहिं तंत्र से
जुडी है कथा पड़ने और १० देवियों के दर्शन
के ले निम्न कथा पडे व् चित्र
देखे एस देवी को मेरे शारदा सुमन आर्पित है
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तो माँ का जरा सा जाप हो जाये
जय माँ पराशक्ति
जय माँ पराशक्ति
जय माँ पराशक्ति
जय माँ पराशक्ति
जय माँ पराशक्ति
जय माँ पराशक्ति
जय माँ पराशक्ति
जय माँ पराशक्ति
जय माँ पराशक्ति
जय माँ पराशक्ति
जय माँ पराशक्ति
जय माँ पराशक्ति
जय माँ पराशक्ति
जय माँ पराशक्ति
जय महाकाली माता
जय महाकाली माता
जय महाकाली माता
जय महाकाली माता
जय महाकाली माता
जय महाकाली माता
जय महाकाली माता
जय महाकाली माता
जय महाकाली माता
जय महाकाली माता
कथा नीचे हैं
श्री देवी भाग्वत पुराण के अनुसार महाविद्याओं की उत्पत्ति भगवान शिव और उनकी पत्नी सती,जो कि पार्वती का पूर्वजन्म थीं, के बीच एक विवाद के कारण हुई।जब शिव और सती का विवाह हुआ तो सती के पिता दक्ष प्रजापति दोनों के विवाह से खुश नहीं थे।उन्होंने शिव का अपमान करने के उद्देश्य से एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को आमन्त्रित किया, द्वेषवश उन्होंने अपने जामाता भगवान शंकर और अपनी पुत्री सती को निमन्त्रित नहीं किया। सती पिता के द्वार आयोजित यज्ञ में जाने की जिद करने लगीं जिसे शिव ने अनसुना कर दिया, जब तक कि सती ने स्वयं को एक भयानक रूप मे परिवर्तित नहीं कर लिया। तत्पश्चात् देवी दस रूपों में विभाजित हो गयी जिनसे वह शिव के विरोध को हराकर यज्ञ में भाग लेने गयीं।
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