BHAGVAN KE ROOP

BHAGVAN KE ROOP
GANESH JI

मंगलवार, 24 जनवरी 2012

पाठकों की मान पर एस बार मैंने ब्रह्मा जी पर पोस्ट लिखी है-ब्रह्मा हिन्दू धर्म में एक प्रमुख देवता हैं। ये हिन्दुओं के तीन प्रमुख देवताओं (ब्रह्मा, विष्णुमहेश) में एक हैं। ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता कहा जाता है। इस कारण ये चतुर्मुख नाम से भी प्रसिद्ध है। पुराणों के अनुसार इनके चार मुख हैं श्री ब्रह्मा का जनम विष्णु के नाभि से कमल के उपोर हुआ था विडियो देखे आप सोच रहे होंगे की इनके चार मुख क्यों हैं  एक बार इक इस्त्री शिव आराधना कर रहे थी ब्रह्मा जी वो अत्यंत सुन्दर लगी वो ओसे एकटक देखने लगे वो लज्जा वश उनके पीछे  चली गये तो उनके सर के  पीछे मुख प्रकट हुआ ओसे प्रकार जब वो दाई व् बी और गये ब्रह्मा जी ओसे देखने के ले मुख बनाते रहे अंत में अत्यंत क्रोधित हो शिव आराधना में विघ्न पड़ता देख वो शिव आराधना की शक्ति से आकाश में चली गये तो ब्रह्मा जी के सर उपर भी सेष आज्ञा तब  ओस इस्त्री ने शिव के नाम के प्रताप से खुद  को भसम कर लाया क्यूंकि ओस पर ब्रह्मा ने गलत दृष्टि डाली थी ओसे शान शिव क्रोध्भारकर प्रकट होएय व् ब्रहम का पांचवा इर कट डाला तभी ओंमेसे अज्ञान का नाश हो गया तभ से ब्रह्म चार मुखी है और एक रोचक तथ्य भी की इनके सरे संसार में पुष्कर्के  अलवा कहीं पूजा नहीं होती क्यूँ इसका उत्तर है की जब शिव ने उनका पांचवा मुख कट दिया तोह शिव ने ब्रहम को श्राप दिया तुम्हरी कहीं भी पूजा नहीं होगी यह है पुषर मंदिर की फोटो ब्रह्मा जी के बारे में एक और रोचक तथ्य की वो बुडे क्यों है जब की सरे देव जवान है जब ब्रह्मा जी अपनी पुत्र के विवाह में गये तो------------------------------------------------------------------------------------------------अपने  पुत्र वधो से विवाह की इचा अ गयी यह जब शिव को ज्ञात हुआ तो ओन्हो ने ओन्हे वृद कर दिया (दरअसल दोनों टाइम पर ब्रह्मा जी पर ओनके पुत्र कामदेव ने कम बन के प्रशिक्षण के ले तीर चले थे ) जब ब्रहम को यह ज्ञात हुआ तो ओन्हेने कामदेव को भसम होने का श्राप दे दिया फेर वो शिव द्वारा भसम हो गये -सतीजी के देहत्याग के पश्चात जब शिव जी तपस्या में लीन हो गये थे उस समय तारक नाम का एक असुर हुआ। जिसने अपने भुजबल, प्रताप और तेज से समस्त लोकों और लोकपालों पर विजय प्राप्त कर लिया जिसके फल स्वरूप सभी देवता सुख और सम्पत्ति से वंचित हो गये। सभी प्रकार से निराश देवतागण ब्रह्मा जी के पास सहायता के लिये पहुँचे। ब्रह्मा जी ने उस सभी देवता को बताया, इस दैत्य की मृत्यु केवल शिव जी के वीर्य से उत्पन्न पुत्र के हाथों ही हो सकती हैं। लेकिन सती के देहत्याग के बाद शिव जी विरक्त हो कर तपस्या में लीन हो गये हैं। सती जी ने हिमाचल के घर पार्वती जी के रूप में पुनः जन्म ले लिया हैं। अतः शिव जी का पार्वती से विवाह करने के लिये उनकी तपस्या को भंग करना आवश्यक हैं। आप लोग कामदेव को शिव जी के पास भेज कर उनकी तपस्या भंग करवाओ फिर उसके बाद हम उन्हें पार्वती जी से विवाह के लिये राजी करवा लेंगे।

ब्रह्मा जी के आदेश अनुसार देवताओं ने कामदेव से शिव जी की तपस्या भंग करने का अनुरोध किया। इस पर कामदेव ने कहा, शिव जी कि तपस्या भंग कर के मेरा कुशल नहीं होगा तथापि मैं आप लोगों का कार्य सिद्ध करूँगा।

इतना कहकर कामदेव पुष्प के धनुष से सुसज्जित होकर वसन्तादि अपने सहयोगी को अपने साथ लेकर शिवजी के तपस्या करने वाले स्थान पर पहुँच गये। वहाँ पर पहुँच कर कामदेव ने अपना ऐसा प्रभाव दिखाया कि वेदों की सारी मर्यादा धरी कि धरी रह गई। कामदेव के इस प्रभाव से भयभीत होकर ब्रह्मचर्य, संयम, नियम, धीरज, धर्म, ज्ञान, विज्ञान, वैराग्य आदि जो विवेक के गुण कहलाते हैं, भाग कर छिप गये। सम्पूर्ण जगत् में स्त्री-पुरुष एवं प्रकृति का समग्र प्राणी समुह सब अपनी-अपनी मर्यादा छोड़कर काम के वश में हो गये। आकाश, जल और पृथ्वी पर विचरण करने वाले समस्त पशु-पक्षी सब कुछ भुला कर केवल काम के वश हो गये। हजारो साल से तपस्या कर सिद्ध, विरक्त, महामुनि और महायोगी बनी विद्वान भी काम के वश में होकर योग संयम को त्याग स्त्री सुख पाने में मग्न हो गये। तो मनुष्यों कि बात ही क्या हो सकती हैं?

एसी स्थिती होने के पश्वयात भी कामदेव के इस कौतुक का शिव जी पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा। इससे कामदेव भी भयभीत हो गये किन्तु अपने कार्य को पूर्ण किये बिना वापस लौटने में उन्हें संकोच हो रहा था । इसलिये उन्होंने तत्काल अपने सहायक ऋतुराज वसन्त को प्रकट कर किया। वृक्ष पुष्पों से सुशोभित हो गये, वन-उपवन, बावली-तालाब आदि हरे भेरे होकर परम सुहाने हो गये, शीतल एवं मंद-मंद सुगन्धित पवन चलने लगा, सरोवर कमल पुष्पों से परिपूरित हो गये, पुष्पों पर भ्रमर बीन-बीना ने लगे । राजहंस, कोयल और तोते रसीली बोली बोलने लगे, अप्सराएँ नृत्य एवं गान करने लगीं।

इस पर भी जब तपस्यारत शिव जी का कुछ भी प्रभाव न पड़ा तो क्रोधित कामदेव ने आम्रवृक्ष की डाल पर चढ़कर अपने पाँचों तीक्ष्ण पुष्प बाणों को छोड़ दिया जो कि शिव जी के हृदय में जाकर लगे। उनकी समाधि टूट गई जिससे उन्हें अत्यन्त क्षोभ हुआ। आम्रवृक्ष की डाल पर कामदेव को देख कर शिवजी क्रोधित हो कर उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया और देखते ही देखते कामदेव भस्म हो गये।

कामदेव कि पत्नी रति अपने पति कि ऎसी दशा सुनते ही रुदन करते हुए शिवजी के पास पहुंच गई। उसके पति विलाप से शिवजी क्रोध त्याग कर बोले, हे रति! विलाप मत कर जब पृथ्वी के भार को उतारने के लिये यदुवंश में श्री कृष्ण अवतार होगा तब तेरा पति उनके पुत्र (प्रद्युम्न) के रूप में उत्पन्न होगा और तुझे पुनः प्राप्त होगा। तब तक वह बिना शरीर के ही इस संसार में सर्वत्र व्याप्त होता रहेगा। अंगहीन हो जाने के कारण कामदेव को अनंग कहते हैं। इसके बाद ब्रह्मा जी सहित समस्त देवताओं ने शिव जी के पास आकर उनसे पार्वती जी से विवाह कर लेने के लिये प्रार्थना की जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।  भरमा जी की पत्नी गायत्री है जिन्हें सावित्री और सरवती भी कहते है  यह ही सरे श्रृष्टि उत्पन करते है  
इनके ८ पुत्र ही जिन्हों ने आगे चलकर श्रृष्टि बनी अगले पोस्ट में हम महादेवी सुर्सवित्री  सरस्वती  देवी पर चर्चा करेंगे पोस्ट पड़ने का बहुत धन्यवाद कोई शंका हो तो मुझे msg  जरुर करे प्लेअसे ज्यादा से ज्यादा यह ब्लॉग ज्वाइन करे टंकी में अपनी संस्कृति को दुबारा जागृत कर सकों 

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