BHAGVAN KE ROOP

BHAGVAN KE ROOP
GANESH JI

शनिवार, 14 जनवरी 2012

shakti mata


या देवी सर्व भूतेशु शक्ति रूपें स्थान्स्चिता नमस्तासेय न्मस्तासेय  नमस्तस्य नमो नमह  
अर्थ- में उस महादेवी की आराधना करता हूँ जो सरे संसार के जड़ चेतन में शक्ति रूप से स्थित है इस देवी को में शत शत प्रणाम करता हूँ 
प्रिय पाठको माँ वो शब्द है जिसकी महानता का वर्णन करने में में असमर्थ हूँ इस महान इश्वर रूप्नी इस्त्री के आज समाज में दयनीय अवस्था का भी में वर्णन नहीं कर कर ससकता खैर आज में आपको शक्ति में के बारे में बताऊंगा तो पाठकों बोलों जय माता दे!!!!!!!! माँ शब्द की व्याख्या निमं है-------------------------(@ 
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यह मेरे तरफ से इस माँ के चरनोम में अर्पित सरधा के फूल है 
माता का संस्कृत मूल मातृ है । हिन्दी में इस शब्द का प्रयोग प्रायः इष्टदेवी को संबोधित करने के लिये किये जाता है, पर सामान्यरूप से माँ शब्द का प्रयोग ज्यादा होता है। अगर अपि कभी भगवन भोलेनाथ की तस्वीर देखे तो वो ध्यान मुद्रा में होते है पर वो सर्व शक्तिमान होते होएय भी किसका ध्यान करते है क्या भोलेनाथ से भी कोई बड़ी अज्ञात शक्ति विद्यमान है  हाँ  वो है अद्य शक्ति माँ वहीँ सभी में  चेतना प्राण रूप से है इसी प्रकार ओधारण के ले शिव में से यदि महाशक्ति की शक्ति अर्थात इ को निकल दे तो देवाधी देव भी मात्र (शिव) शव रहे है जाते है है देवी माँ को  बहुत नाम से पुकारते है जैसे दुर्गा कलि भद्रकाली महाशक्ति इन्द्राणी ब्रहमाणी वैष्णवी सरस्वती वारुनी आदि सभी की यह देवी शक्ति है  यह शती शिवक को पारवती के रूप ने विष्णु को लुक्स्मी के रूप से ब्रहम को ब्रहमाणी के रूप में और इन्द्र को इन्द्राणी की रूप में मिली है  येही देवी तेनो देवों की सृजन व् पालन करता है  तेनो देव देवी की आज्ञा का पालन मात्र करते है  विडियो देखे  इसी देवी ने कए अवतार लेकर कभी दुर्गा काली व् लक्ष्मी बनते है` इनके बहुत नाम है पर्मुख नाम  108  निचे  है-सती, 
साध्वी, 
भवप्रीता, 
भवानी, 
भवमोचनी, 
आर्या, 
दुर्गा, 
जया, 
आद्या, 
त्रिनेत्रा, 
शूलधारिणी, 
पिनाकधारिणी, 
चित्रा, 
चंद्रघंटा, 
महातपा, 
बुद्धि, 
अहंकारा, 
चित्तरूपा, 
चिता, 
चिति, 
सर्वमंत्रमयी, 
सत्ता, 
सत्यानंदस्वरुपिणी, 
अनंता, 
भाविनी, 
भव्या, 
अभव्या, 
सदागति, 
शाम्भवी, 
देवमाता, 
चिंता, 
रत्नप्रिया, 
सर्वविद्या, 
दक्षकन्या, 
दक्षयज्ञविनाशिनी, 
अपर्णा, 
अनेकवर्णा, 
पाटला, 
पाटलावती, 
पट्टाम्बरपरिधाना, 
कलमंजरीरंजिनी, 
अमेयविक्रमा, 
क्रूरा, 
सुन्दरी, 
सुरसुन्दरी, 
वनदुर्गा, 
मातंगी, 
मतंगमुनिपूजिता, 
ब्राह्मी, 
माहेश्वरी, 
एंद्री, 
कौमारी, 
वैष्णवी, 
चामुंडा, 
वाराही, 
लक्ष्मी, 
पुरुषाकृति, 
विमला, 
उत्कर्षिनी, 
ज्ञाना, 
क्रिया, 
नित्या, 
बुद्धिदा, 
बहुला, 
नवरात्रि पर्व 2011
ND
बहुलप्रिया, 
सर्ववाहनवाहना, 
निशुंभशुंभहननी, 
महिषासुरमर्दिनी, 
मधुकैटभहंत्री, 
चंडमुंडविनाशिनी, 
सर्वसुरविनाशा, 
सर्वदानवघातिनी, 
सर्वशास्त्रमयी, 
सत्या, 
सर्वास्त्रधारिनी, 
अनेकशस्त्रहस्ता, 
अनेकास्त्रधारिनी, 
कुमारी, 
एककन्या, 
कैशोरी, 
युवती, 
यत‍ि, 
अप्रौढ़ा, 
प्रौढ़ा, 
वृद्धमाता, 
बलप्रदा, 
महोदरी, 
मुक्तकेशी, 
घोररूपा, 
महाबला, 
अग्निज्वाला, 
रौद्रमुखी, 
कालरात्रि, 
तपस्विनी, 
नारायणी, 
भद्रकाली, 
विष्णुमाया, 
जलोदरी, 
शिवदुती, 
कराली, 
अनंता, 
परमेश्वरी, 
कात्यायनी, 
सावित्री, 
प्रत्यक्षा, 
ब्रह्मावादिनी।
इनके स्वरूपों की ल्कथा दुर्गा पार्वती का दूसरा नाम है। हिन्दुओं के शाक्त साम्प्रदाय में भगवती दुर्गा को ही दुनिया की पराशक्ति और सर्वोच्च देवता माना जाता है (शाक्त साम्प्रदाय ईश्वर को देवी के रूप में मानता है) । वेदों में तो दुर्गा का कोई ज़िक्र नहीं है, मगरउपनिषद में देवी "उमा हैमवती" (उमा, हिमालय की पुत्री) का वर्णन है । पुराण में दुर्गा को आदिशक्ति माना गया है । दुर्गा असल में शिव की पत्नी पार्वती का एक रूप हैं, जिसकी उत्पत्ति राक्षसों का नाश करने के लिये देवताओं की प्रार्थना पर पार्वती ने लिया था -- इस तरह दुर्गा युद्ध की देवी हैं । देवी दुर्गा के स्वयं कई रूप हैं । मुख्य रूप उनका "गौरी" है, अर्थात शान्तमय, सुन्दर और गोरा रूप । उनका सबसे विकराल  रूप काली है,  

शैलपुत्री

Shailaputri.jpg
देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं। दुर्गाजी पहले स्वरूप में 'शैलपुत्री' के नाम से जानी जाती हैं।[१] ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है।





          

ब्रह्मचारिणी

Brahmacharini.jpg
नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली।           














चंद्रघंटा

Chandraghanta.jpg
माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है।





कूष्माण्डा

Kushmanda.jpg
नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अदाहत' चक्र में अवस्थित होता है।


स्कंदमाता

Skandamata.jpg
नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।


कात्यायनी

Katyayini.jpg
माँ दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। उस दिन साधक का मन 'आज्ञा' चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।


कालरात्रि

Kalaratri.jpg
माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है।


महागौरी

Mahagouri.jpg
माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों को सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं।


सिद्धिदात्री

Siddhidatri.jpg
माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है।
इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है।











यह तें देविया शक्त का रूप है यह तीन ही प्रमुख है 

  महादेवी  का मूल महामंत्र है- ॐ आईं ह्रीं क्लीं          


चमुन्दायण विचय 


एस मंत्र के १००८  सुध चित के जाप से माँ आतिशिघ्रा   


मनोकामना पूरी कर के badhao  का हरण करते हैं  


महाकाली माँ के १ लाख मंत्र के जाप से माँ दर्शन देकर  


वर देते हैं -श्री चामुंडा निशुम्भ हरिणी  सतिसुता श्री 


चन्द्र धर्निनी नमामि रुद्रानी जगद्पलिनी नमामि 


शक्ति  जगातोधारिणी दर्शन देव्या  दार्शन अभीलाशी 


श्री शल्य देवा दर्शन देवी दर्शन देवी म्हाकलिकमिनी अर्ध्य हासिनी श्री मु न्द्मालिनी  
परमशक्ति  महाशक्ति धरनी वैभव करनी दर्शन देवअ 


शव वाहने देव चरनन के दासी दर्शन अभिलाषी क्रिपहू माँ देवी श्री कली रूपा श्रृष्टि जनन्य श्री श्यामा आम्बा कृष्णा नमामि  


श्रृष्टि जनन्य दर्शन देहीं  श्री श्रृष्टि जनन्य अहरी क्रिसना नमामि 
  






 जय माँ लक्ष्मी 


  श्री महालक्ष्मी जी समुन्द्र मंथन से प्रकट हुई है है इसके ले विडियो देखे 
























ॐ श्री महालक्ष्मी नमः विष्णु वल्लभा पद्मासना 


विश्नुभार्य नमो नमामि 






जय माँ सरस्वती आदि शती ब्र्हम्भार्य विन्वादिनी 


श्वेथान्स्वहिनी वेदमाता ज्ञान प्रदायनी म्हासर्वती 


शरणम् तवं  


इनका ,मूल मानता एं हैं इसका १ क्रोड़े जाप से ,माँ 




दर्शन देकर वार प्रदान करते है 




यह उपरोक्त तीन म्हादेवियों का हमने वर्णन किया 



आब में १० म्हादेवियों का वर्णन करता हूँ एहिं तंत्र से 


जुडी है कथा पड़ने  और १० देवियों के दर्शन 




के ले  निम्न कथा पडे व् चित्र 

देखे एस देवी को मेरे शारदा सुमन आर्पित है 

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तो माँ का जरा सा जाप हो जाये


जय                 माँ                 पराशक्ति 


जय                 माँ                 पराशक्ति 


जय                 माँ                 पराशक्ति 



जय                 माँ                 पराशक्ति 



जय                 माँ                 पराशक्ति 


जय                 माँ                 पराशक्ति 

जय                 माँ                 पराशक्ति 

जय                 माँ                 पराशक्ति 

जय                 माँ                 पराशक्ति 



जय                 माँ                 पराशक्ति 

जय                 माँ                 पराशक्ति 


जय                 माँ                 पराशक्ति 


जय                 माँ                 पराशक्ति 


जय                 माँ                 पराशक्ति 





 जय महाकाली माता 
जय महाकाली माता



जय महाकाली माता


जय महाकाली माता










जय महाकाली माता








जय महाकाली माता









जय महाकाली माता












जय महाकाली माता








जय महाकाली माता













जय महाकाली माता
















जय महाकाली माता
























कथा नीचे हैं 















































































































































श्री देवी भाग्वत पुराण के अनुसार महाविद्याओं की उत्पत्ति भगवान शिव और उनकी पत्नी सती,जो कि पार्वती का पूर्वजन्म थीं, के बीच एक विवाद के कारण हुई।जब शिव और सती का विवाह हुआ तो सती के पिता दक्ष प्रजापति दोनों के विवाह से खुश नहीं थे।उन्होंने शिव का अपमान करने के उद्देश्य से एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को आमन्त्रित किया, द्वेषवश उन्होंने अपने जामाता भगवान शंकर और अपनी पुत्री सती को निमन्त्रित नहीं किया। सती पिता के द्वार आयोजित यज्ञ में जाने की जिद करने लगीं जिसे शिव ने अनसुना कर दिया, जब तक कि सती ने स्वयं को एक भयानक रूप मे परिवर्तित नहीं कर लिया। तत्पश्चात् देवी दस रूपों में विभाजित हो गयी जिनसे वह शिव के विरोध को हराकर यज्ञ में भाग लेने गयीं।   
सटी ही शक्ति का द्दुसरा नाम है इनके अवतारों की कथा इस प्रकासर है  
 पुराणों में 51 शक्तिपीठो का वर्णन है। आइए जानते हैं देश-विदेश में स्थित इन शक्तिपीठों के बारे में| 51 शक्तिपीठों के सन्दर्भ में जो कथा है वह यह है कि सती के पिता राजा प्रजापति दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया था। परन्तु सती के पति भगवान शिव को इस यज्ञ में शामिल होने के लिए निमन्त्रण नहीं भेजा था। जिससे भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए लेकिन सती जिद्द कर यज्ञ में शामिल होने चली गई, वहां शिव की निन्दा सुनकर वह यज्ञकुण्ड में कूद गईं तब भगवान शिव ने सती के वियोग में सती का शव अपने सिर पर धारण कर लिया और सम्पूर्ण भूमण्डल पर भ्रमण करने लगे। भगवती सती ने अन्तरिक्ष में शिव को दर्शन दिया और उनसे कहा कि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के खण्ड विभक्त होकर गिरेंगे, वहा महाशक्तिपीठ का उदय होगा। सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुए नृत्य भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। इस पर विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड करने का विचार किया। जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते। इस प्रकार जहां जहां सती के अंग के टुकड़े, वस्त्र या आभूषण गिरे, वहीं शक्तिपीठ का उदय हुआ।
1. किरीट कात्यायनी
पश्चिम बंगाल के हुगली नदी के तट लालबाग कोट पर स्थित है किरीट शक्तिपीठ, जहां सती माता का किरीट यानी शिराभूषण या मुकुट गिरा था। यहां की शक्ति विमला अथवा भुवनेश्वरी तथा भैरव संवर्त हैं।
कात्यायनी कात्यायनी
वृन्दावन, मथुरा के भूतेश्वर में स्थित है कात्यायनी वृन्दावन शक्तिपीठ जहां सती का केशपाश गिरा था। यहां की शक्ति देवी कात्यायनी हैं।
करवीर शक्तिपीठ
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का त्रिनेत्र गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। यहां महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है।
श्री पर्वत शक्तिपीठ
इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतान्तर है कुछ विद्वानों का मानना है कि इस पीठ का मूल स्थल लद्दाख है, जबकि कुछ का मानना है कि यह असम के सिलहट में है जहां माता सती का दक्षिण तल्प यानी कनपटी गिरा था। यहां की शक्ति श्री सुन्दरी एवं भैरव सुन्दरानन्द हैं।
विशालाक्षी शक्तिपीठ
उत्तर प्रदेश, वाराणसी के मीरघाट पर स्थित है शक्तिपीठ जहां माता सती के दाहिने कान के मणि गिरे थे। यहां की शक्ति विशालाक्षी तथा भैरव काल भैरव हैं।
गोदावरी तट शक्तिपीठ
आंध्रप्रदेश के कब्बूर में गोदावरी तट पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का वामगण्ड यानी बायां कपोल गिरा था। यहां की शक्ति विश्वेश्वरी या रुक्मणी तथा भैरव दण्डपाणि हैं।
शुचीन्द्रम शक्तिपीठ
तमिलनाडु, कन्याकुमारी के त्रिासागर संगम स्थल पर स्थित है यह शुची शक्तिपीठ, जहां सती के उफध्र्वदन्त (मतान्तर से पृष्ठ भागद्ध गिरे थे। यहां की शक्ति नारायणी तथा भैरव संहार या संकूर हैं।
पंच सागर शक्तिपीठ
इस शक्तिपीठ का कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है लेकिन यहां माता का नीचे के दान्त गिरे थे। यहां की शक्ति वाराही तथा भैरव महारुद्र हैं।
9. ज्वालामुखी शक्तिपीठ
हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां सती का जिह्वा गिरी थी। यहां की शक्ति सिद्धिदा व भैरव उन्मत्त हैं।
10. भैरव पर्वत शक्तिपीठ
इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतदभेद है। कुछ  गुजरात के गिरिनार के निकट भैरव पर्वत को तो कुछ मध्य प्रदेश के उज्जैन के निकट क्षीप्रा नदी तट पर वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं, जहां माता का उफध्र्व ओष्ठ गिरा है। यहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण हैं।
11. अट्टहास शक्तिपीठ
अट्टहास शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के लाबपुर में स्थित है। जहां माता का अध्रोष्ठ यानी नीचे का होंठ गिरा था। यहां की शक्ति पफुल्लरा तथा भैरव विश्वेश हैं।
12. जनस्थान शक्तिपीठ
महाराष्ट्र नासिक के पंचवटी में स्थित है जनस्थान शक्तिपीठ जहां माता का ठुड्डी गिरी थी। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव विकृताक्ष हैं।
13. कश्मीर शक्तिपीठ
जम्मू-कश्मीर के अमरनाथ में स्थित है यह शक्तिपीठ जहां माता का कण्ठ गिरा था। यहां की शक्ति महामाया तथा भैरव त्रिसंध्येश्वर हैं।
14. नन्दीपुर शक्तिपीठ
पश्चिम बंगाल के सैन्थया में स्थित है यह पीठ, जहां देवी की देह का कण्ठहार गिरा था। यहां कि शक्ति निन्दनी और भैरव निन्दकेश्वर हैं।
15. श्री शैल शक्तिपीठ
आंध्रप्रदेश  के कुर्नूल के पास है श्री शैल का शक्तिपीठ, जहां माता का ग्रीवा गिरा था। यहां की शक्ति महालक्ष्मी तथा भैरव संवरानन्द अथव ईश्वरानन्द हैं।
16. नलहरी शक्तिपीठ
पश्चिम बंगाल के बोलपुर में है नलहरी शक्तिपीठ, जहां माता का उदरनली गिरी थी। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव योगीश हैं।
17. मिथिला शक्तिपीठ
इसका निश्चित स्थान अज्ञात है। स्थान को लेकर मन्तारतर है तीन स्थानों पर मिथिला शक्तिपीठ को माना जाता है, वह है नेपाल के जनकपुर, बिहार के समस्तीपुर और सहरसा, जहां माता का वाम स्कंध् गिरा था। यहां की शक्ति उमा या महादेवी तथा भैरव महोदर हैं।
18. रत्नावली शक्तिपीठ
इसका निश्चित स्थान अज्ञात है, बंगाज पंजिका के अनुसार यह तमिलनाडु के चेन्नई में कहीं स्थित है रत्नावली शक्तिपीठ जहां माता का दक्षिण स्कंध् गिरा था। यहां की शक्ति कुमारी तथा भैरव शिव हैं।
19. अम्बाजी शक्तिपीठ, प्रभास पीठ
गुजरात गूना गढ़ के गिरनार पर्वत के प्रथत शिखर पर देवी अिम्बका का भव्य विशाल मन्दिर है, जहां माता का उदर गिरा था। यहां की शक्ति चन्द्रभागा तथा भैरव वक्रतुण्ड है। ऐसी भी मान्यता है कि गिरिनार पर्वत के निकट ही सती का उध्र्वोष्ठ गिरा था, जहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण है।
20. जालंध्र शक्तिपीठ
पंजाब के जालंध्र में स्थित है माता का जालंध्र शक्तिपीठ जहां माता का वामस्तन गिरा था। यहां की शक्ति त्रिापुरमालिनी तथा भैरव भीषण हैं।
21. रामागरि शक्तिपीठ
इस शक्ति पीठ की स्थिति को लेकर भी विद्वानों में मतान्तर है। कुछ उत्तर प्रदेश के चित्राकूट तो कुछ मध्य प्रदेश के मैहर में मानते हैं, जहां माता का दाहिना स्तन गिरा था। यहा की शक्ति शिवानी तथा भैरव चण्ड हैं।
22. वैद्यनाथ का हार्द शक्तिपीठ
झारखण्ड के गिरिडीह, देवघर स्थित है वैद्यनाथ हार्द शक्तिपीठ, जहां माता का हृदय गिरा था। यहां की शक्ति जयदुर्गा तथा भैरव वैद्यनाथ है। एक मान्यतानुसार यहीं पर सती का दाह-संस्कार भी हुआ था।
23. वक्त्रोश्वर शक्तिपीठ
माता का यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के सैिन्थया में स्थित है जहां माता का मन गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव वक्त्रानाथ हैं।
24. कण्यकाश्रम कन्याकुमारी
तमिलनाडु के कन्याकुमारी के तीन सागरों हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ीद्ध के संगम पर स्थित है कण्यकाश्रम शक्तिपीठ, जहां माता का पीठ मतान्तर से उध्र्वदन्त गिरा था। यहां की शक्ति शर्वाणि या नारायणी तथा भैरव निमषि या स्थाणु हैं।
25. बहुला शक्तिपीठ
पश्चिम बंगाल के कटवा जंक्शन के निकट केतुग्राम में स्थित है बहुला शक्तिपीठ, जहां माता का वाम बाहु गिरा था। यहां की शक्ति बहुला तथा भैरव भीरुक हैं।
26. उज्जयिनी शक्तिपीठ
मध्य प्रदेश के उज्जैन के पावन क्षिप्रा के दोनों तटों पर स्थित है उज्जयिनी शक्तिपीठ। जहां माता का कुहनी गिरा था। यहां की शक्ति मंगल चण्डिका तथा भैरव मांगल्य कपिलांबर हैं।
27. मणिवेदिका शक्तिपीठ
राजस्थान के पुष्कर में स्थित है मणिदेविका शक्तिपीठ, जिसे गायत्री मन्दिर के नाम से जाना जाता है यहीं माता की कलाइयां गिरी थीं। यहां की शक्ति गायत्री तथा भैरव शर्वानन्द हैं।
28. प्रयाग शक्तिपीठ
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित है। यहां माता की हाथ की अंगुलियां गिरी थी। लेकिन, स्थानों को लेकर मतभेद इसे यहां अक्षयवट, मीरापुर और अलोपी स्थानों गिरा माना जाता है। तीनों शक्तिपीठ की शक्ति ललिता हैं।
29. विरजाक्षेत्रा, उत्कल
उत्कल शक्तिपीठ उड़ीसा के पुरी और याजपुर में माना जाता है जहां माता की नाभि गिरा था। यहां की शक्ति  विमला तथा भैरव जगन्नाथ पुरुषोत्तम हैं।
30. कांची शक्तिपीठ
तमिलनाडु के कांचीवरम् में स्थित है माता का कांची शक्तिपीठ, जहां माता का कंकाल गिरा था। यहां की शक्ति देवगर्भा तथा भैरव रुरु हैं।
31. कालमाध्व शक्तिपीठ
इस शक्तिपीठ के बारे कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है। परन्तु, यहां माता का वाम नितम्ब गिरा था। यहां की शक्ति काली तथा भैरव असितांग हैं।
32. शोण शक्तिपीठ
मध्य प्रदेश के अमरकंटक के नर्मदा मन्दिर शोण शक्तिपीठ है। यहां माता का दक्षिण नितम्ब गिरा था। एक दूसरी मान्यता यह है कि  बिहार के सासाराम का ताराचण्डी मन्दिर ही शोण तटस्था शक्तिपीठ है। यहां सती का दायां नेत्रा गिरा था ऐसा माना जाता है। यहां की शक्ति नर्मदा या शोणाक्षी तथा भैरव भद्रसेन हैं।
33. कामरूप कामाख्या शक्तिपीठ कामगिरि
असम गुवाहाटी के कामगिरि पर्वत पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का योनि गिरा था। यहां की शक्ति कामाख्या तथा भैरव उमानन्द हैं।
34. जयन्ती शक्तिपीठ
जयन्ती शक्तिपीठ मेघालय के जयन्तिया पहाडी पर स्थित है, जहां माता का वाम जंघा गिरा था। यहां की शक्ति जयन्ती तथा भैरव क्रमदीश्वर हैं।
35. मगध् शक्तिपीठ
बिहार की राजधनी पटना में स्थित पटनेश्वरी देवी को ही शक्तिपीठ माना जाता है जहां माता का दाहिना जंघा गिरा था। यहां की शक्ति सर्वानन्दकरी तथा भैरव व्योमकेश हैं।
36. त्रिस्तोता शक्तिपीठ
पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के शालवाड़ी गांव में तीस्ता नदी पर स्थित है त्रिस्तोता शक्तिपीठ, जहां माता का वामपाद गिरा था। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव ईश्वर हैं।
37. त्रिपुरी सुन्दरी शक्तित्रिपुरी पीठ
त्रिपुरा के राध किशोर ग्राम में स्थित है त्रिपुरे सुन्दरी शक्तिपीठ, जहां माता का दक्षिण पाद गिरा था। यहां की शक्ति त्रिापुर सुन्दरी तथा भैरव त्रिपुरेश हैं।
38. विभाष शक्तिपीठ
पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के ताम्रलुक ग्रााम में स्थित है विभाष शक्तिपीठ, जहां माता का वाम टखना गिरा था। यहां की शक्ति कापालिनी, भीमरूपा तथा भैरव सर्वानन्द हैं।
39. देवीकूप पीठ कुरुक्षेत्र (शक्तिपीठ)
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जंक्शन के निकट द्वैपायन सरोवर के पास स्थित है कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ, जिसे श्रीदेवीकूप(भद्रकाली पीठ के नाम से मान्य है। माता का दहिने चरण (गुल्पफद्ध गिरे थे। यहां की शक्ति सावित्री तथा भैरव स्थाणु हैं।
40. युगाद्या शक्तिपीठ (क्षीरग्राम शक्तिपीठ)
पश्चिम बंगाल के बर्दमान जिले के क्षीरग्राम में स्थित है युगाद्या शक्तिपीठ, यहां सती के दाहिने चरण का अंगूठा गिरा था।
41. विराट का अम्बिका शक्तिपीठ
राजस्थान के गुलाबी नगरी जयपुर के वैराटग्राम में स्थित है विराट शक्तिपीठ, जहां माता का दक्षिण पादांगुलियां गिरी थीं। यहां की शक्ति अंबिका तथा भैरव अमृत हैं।
42. काली शक्तिपीठ
पश्चिम बंगाल, कोलकाता के कालीघाट में कालीमन्दिर के नाम से प्रसिध यह शक्तिपीठ, जहां माता के दाएं पांव की अंगूठा छोड़ 4 अन्य अंगुलियां गिरी थीं। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव नकुलेश हैं।
43. मानस शक्तिपीठ
तिब्बत के मानसरोवर तट पर स्थित है मानस शक्तिपीठ, जहां माता का दाहिना हथेली का निपात हुआ था। यहां की शक्ति की दाक्षायणी तथा भैरव अमर हैं।
44. लंका शक्तिपीठ
श्रीलंका में स्थित है लंका शक्तिपीठ, जहां माता का नूपुर गिरा था। यहां की शक्ति इन्द्राक्षी तथा भैरव राक्षसेश्वर हैं। लेकिन, उस स्थान ज्ञात नहीं है कि श्रीलंका के किस स्थान पर गिरे थे।
 45. गण्डकी शक्तिपीठ
नेपाल में गण्डकी नदी के उद्गम पर स्थित है गण्डकी शक्तिपीठ, जहां सती के दक्षिणगण्ड(कपोल) गिरा था। यहां शक्ति `गण्डकी´ तथा भैरव `चक्रपाणि´ हैं।
46. गुह्येश्वरी शक्तिपीठ
नेपाल के काठमाण्डू में पशुपतिनाथ मन्दिर के पास ही स्थित है गुह्येश्वरी शक्तिपीठ है, जहां माता सती के दोनों जानु (घुटने) गिरे थे। यहां की शक्ति `महामाया´ और भैरव `कपाल´ हैं।
47. हिंगलाज शक्तिपीठ
पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान प्रान्त में स्थित है माता हिंगलाज शक्तिपीठ, जहां माता का ब्रह्मरन्ध्र गिरा था।
48. सुगंध शक्तिपीठ
बांग्लादेश के खुलना में सुगंध नदी के तट पर स्थित है उग्रतारा देवी का शक्तिपीठ, जहां माता का नासिका गिरा था। यहां की देवी सुनन्दा है तथा भैरव त्रयम्बक हैं।
49. करतोयाघाट शक्तिपीठ
बंग्लादेश भवानीपुर के बेगड़ा में  करतोया नदी के तट पर स्थित है करतोयाघाट शक्तिपीठ, जहां माता का वाम तल्प गिरा था। यहां देवी अपर्णा रूप में तथा शिव वामन भैरव रूप में वास करते हैं।
50. चट्टल शक्तिपीठ
बंग्लादेश के चटगांव  में स्थित है चट्टल का भवानी शक्तिपीठ, जहां माता का दाहिना बाहु यानी भुजा गिरा था। यहां की शक्ति भवानी  तथा भेरव चन्द्रशेखर हैं।
51. यशोरेश्वरी शक्तिपीठ
बांग्लादेश के जैसोर खुलना में स्थित है माता का प्रसि( यशोरेश्वरी शक्तिपीठ, जहां माता का बायीं हथेली गिरा था। यहां शक्ति यशोरेश्वरी तथा भैरव चन्द्र हैं। पोस्ट पड़ने के ले आपका बहुत बहुत धन्यवाद आप अगर किसे भी प्रकार के हिन्दू धरम सम्ब्वंधित प्रश्न का उत्तेर चाहते है तोह हमे ज्वाइन जरुर करे आपसे विनीति है पाठको आगली पोस्ट में में आपको  शरिष्टि के पालन करता भगवन श्री हरी विष्णु और उनके अवतारों के बारे में बतोंगा आप सभी को लोहरी व् मकर सक्रांति की सुभकामना 
                                                                                                      



19 टिप्‍पणियां:

  1. nice blog plz write info On brhama ji in next postby-saurav

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  2. shukar hai!!!! ishwar ka koi to bhagwan ke naam ka blog bna -priya

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  3. nice blog can u tell tell why v call vishnu shri hari why called hari wt is thee meaning

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    1. dear frnd -vishnu bhagwan ko hari is leay kehte hai kyunki vo apne bhakton ke dukh v kashat harte hai is karan shok hari prabhu ko shri hari kehte hai-god bless all

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  4. nice info how you know all abt that?????-vijay

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    1. coz i have interest in hindu mythology i spent many hours on reading spiritual books like purans and vedas,bible,islamik stories,sikhisms stories and all religious books.

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  5. kya aap mujhe devi kalratri ke bare me bta sakte hai me kabse on pr search kar reha hun vo humari gramdevi hai plz tell if u know

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  6. kyu hanuman or bhairav ki puja mata ke sath hoti hai

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    1. kyunki jo mata ki aardhna karte hai mata sda unke sath hai is leay hi vo hanuman v bhairav nath ke sath rehkar yehi sandesh deti hai is ke leay vaishnu maa ki katha dekhe

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  7. kamari puja me kum se kum kitne kanya v kitne varsh ki kanya ho

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  8. kumari puja me ginti ka koi vehm nahi hai
    kum se kum 16 varsh tak hoti hai is ko deeply janne ke leay kanya pujan mhatyampde

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  9. mantron ke spellings ghalat likhe gaye hain,kripya isse theek karwa len.

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  10. is truti k leay maaf krein blog pr typing asan nahi hai padne k leay dhnyawad

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